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12 साल के बच्चे को मिलेगी नई जिंदगी, पहली बार जीन थेरेपी से सिकल सेल का इलाज शुरू

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श्रेया न्यूज़ ,

सिकल सेल के कारण 12 साल के बच्चे केंड्रिक क्रोमर आम बच्चों जैसी मौज-मस्ती की जिंदगी बसर नहीं कर पा रहा था। उसके लिए सर्दी में बाहर घूमना और साइकिल चलाना दूभर था। उसे रह-रहकर असहनीय दर्द उठता था। अमरीका में सिकल सेल बीमारी के इलाज के लिए पिछले साल दिसंबर में दो तरह की जीन थेरेपी को मंजूरी मिली थी।

अमेरिका|May 08, 2024 / 12:57 pm

Treatment of sickle cell patient started with gene therapy

 

अमरीका में 12 साल के केंड्रिक क्रोमर को जीन थेरेपी (Gene therapy) दी जा रही है। कई महीने चलने वाले इलाज के बाद वह शायद सिकल सेल से मुक्त हो पाएगा। दुनिया में पहली बार सिकल सेल (Sickle cell) के किसी मरीज का इलाज जीन थेरेपी से हो रहा है।
अगर यह कारगर रहता है तो दुनिया के ऐसे करोड़ों मरीजों के लिए जीन थेरेपी वरदान साबित होगी। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सिकल सेल के कारण केंड्रिक क्रोमर आम बच्चों जैसी मौज-मस्ती की जिंदगी बसर नहीं कर पा रहा था।
उसके लिए सर्दी में बाहर घूमना और साइकिल चलाना दूभर था। उसे रह-रहकर असहनीय दर्द उठता था। अमरीका में सिकल सेल बीमारी के इलाज के लिए पिछले साल दिसंबर में दो तरह की जीन थेरेपी को मंजूरी मिली थी।
पहली थेरेपी में शरीर में एक जीन और जोड़ा जाता है, जबकि दूसरी में पहले से मौजूद जीन में बदलाव किए जाते हैं। ब्लूबर्ड बायो नाम की कंपनी का केंड्रिक क्रोमर पहला कमर्शियल मरीज है। अमरीका में क्रोमर जैसे करीब 20,000 लोग सिकल सेल से पीडि़त हैं।
जेनेटिकली मॉडिफाई होंगी स्टेम सेल्स
केंड्रिक क्रोमर का इलाज वॉशिंगटन के चिल्ड्रन नेशनल हॉस्पिटल में चल रहा है। डॉक्टरों ने उसके बोन मैरो की स्टेम सेल्स निकाल दी हैं। इन्हें ब्लूबर्ड अपनी लैब में जेनेटिकली मॉडिफाई करेगी।
इस प्रक्रिया के लिए केंड्रिक के लाखों-करोड़ों स्टेम सेल की जरूरत होगी। पहली बार में पर्याप्त स्टेम सेल नहीं निकली होंगी तो केंड्रिक के एक और स्टेम सेल एक्सट्रैक्शन के लिए महीनेभर में तैयारी करनी होगी।
भारत में दो करोड़ से ज्यादा मरीज
भारत में सिकल सेल के दो करोड़ से ज्यादा मरीज हैं। इस आनुवंशिक बीमारी में लाल रक्त कणिकाओं का डिसऑर्डर हीमोग्लोबिन को प्रभावित करता है। लाल रक्त कणिकाएं आसानी से मूव नहीं कर पातीं और शरीर में खून का प्रवाह रोक सकती हैं।
यह ताउम्र साथ रहने वाली बीमारी है। अब तक बोन मैरो ट्रांसप्लांट इसका एकमात्र इलाज था।
Shreya News
Author: Shreya News

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